ख्वाब ये तेरा यूँ मुझको जगाता हैं...
उल्फत के हैं.. जो बादल ये बरसते...
और मन हैं कि बस भीगे जाता हैं...
जब से बाहों में बसी तेरे बदन कि गर्मी...
रूह में हैं कुछ..जो महके जाता हैं...
शिद्दत-इ-इश्क अब रोज हैं बढती...
मिले भी जो अब तू.. बस बेचैनियाँ बढाता हैं...
उम्र भर को ही हमदम पास अब आ जा
बारहां खुद तड़पता हैं.. मुझको तड़पाता हैं...
एक लिबास तेरा.. और उस पे अदायें भी...
हाल-ऐ-दिल क्या हो.. सब होश जाता हैं...
तेरी कमर के बल पे अटके अरमान जो मेरे...
उंगलियाँ जब ढूंढे.. तू खुद को खुद में छुपाता हैं...
तेरी मेरी आँखों में अब जो साझा हैं सपने...
रिश्ता हैं ये अपना... जो अब गहराता हैं....
꘥𑃵𑃵
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