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Wednesday, January 16, 2019

बचपन के पल (पार्ट 2 )

बचपन की यादें जब कभी याद आती हैं आँखें नम कर जाती हैं| वो दिन ऐसे होते हैं जो हर कोई चाहता हैं की लौट के आजायें | दोस्तों वो दिन लौट कर वापिस तो नहीं आ सकते बचपन पल बड़े ही अनमोल होते हैं आज जब हम किसी छोटे बच्चे को देखते हैं। तो उसमे हमारा बचपन नज़र आता है।  बचपन में न कुछ पाने का सपना होता  न ही कुछ खोने का डर होता है 
वो गाँव की पतली-पतली गलियों में दौड़ कर चलना, घर में भाई बहन के साथ खेलना कहीं उनसे रूठना, कहीं उन्हें मनना, कभी उनसे रूठकर कट्टी कर लेना, कही वो हमसे कट्टी कर लेते, दूसरे दिन फिर उसी तरह साथ में खेलना,कहीं स्कूल में दोस्तों कि शिकायत करना कहीं दोस्तों से झगड़ा करना घर आकर मम्मी को सारी बात बताना, कितना अनमोल होता है कितना मीठा पल होता है ऐसे पलों का हम बयां  भी नहीं कर सकते। 
कहीं कागज़ के पन्नो से जहाज़ बनना और उसे हवा में जोर से उड़ना और ये देखना की किसकी जहाज़ कितने देर हवा में उड़ रही थी, बरसात में समय में पानी बरसने का इंतजार करते और बरसात रुकने के बाद दौड़ कर खेत से मिट्ठी लाकर खिलौने बनाते, फिर 2-3 दिन सूखने के बाद एक पतली सी रस्सी बाँधकर उसे चलते, दूसरे के खिलौनों को ईर्ष्या की नजर से देखते, कही बातों ही बातों में बहन से झगड़ा कर लेते, कट्टी करते कुछ समय बाद फिर साथ खेलने लगते। 
गर्मी के समय में आम के बगीचे में पेड़ के नीचे गुड्डे - गुड़िया बनाकर खेलते फिर उनकी शादी करना, जरा सी हवा चलने पर दौड़ कर आम बीनते, और अगर किसी पेड़ के एक पका हुआ आम दिख जाये तो पत्थर या मिट्ठी के ढेले से तब तक मारते जब तक वो गिर न जाये। फिर साथ मिलकर खाते फिर किसी बात पर झगड़ा कर लेना फिर कट्टी होना फिर दूसरे दिन बोलने लगना, मानो यहीं ज़िंदगी है। 
साथ में किताब,कॉपी,टिफिन लेकर स्कूल जाना वहां दोस्तों के साथ मस्ती करना दूसरे दोस्त का लंच खाना , छुट्टी होने पर साथ में अपने-अपने  जाना घर आकर हाथ पैर धोकर खाना खाना , कहीं होमवर्क करने का डर, कहीं दूसरे दिन टीचर द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नो को याद करने का डर, न बनने पर मार खाने का डर। तो कहीं हफ्ते में संडे आने का इंतजार 
 आज हमें ये बातें याद करके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। 
मम्मी - पापा के साथ मेले में जाना और वहां जाकर लाई, जलेबी , गुब्बारे और खिलौना खरीदने कि ज़िद करना। और मिल जाने पर मनो सारी खुशियाँ आ मिल गयीं  है , 
झूले में डर - डर कर बैठना फिर झूले के ऊपर जाने पर जोर-जोर से चिल्लाना।
आज इस उम्र में पहुंचकर ऐसा लगता हैं कि , आज वही बचपन, वही खुशियाँ  फिर दुबारा लौटकर आ जाये, लेकिन यह सच है कि वो बचपन वो पल कभी लौटकर नहीं आयेगा। वो पल आज भी हमारी आँखों के सामने घूमने लगता हैं, जब हम किसी छोटे बच्चे को खेलते देखते हैं तो हमें अपना बचपन नजर  आता है।  यह पल कितना अनमोल है उसका बयां नहीं किया जा सकता !!!


बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी !!

                                           कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन
                                           सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम...

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