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Friday, December 20, 2019

ज़िंदगी एक आईना



आज आईने के सामनेखड़ा अपने आपकोनिहार रहा थागुमशुदा वजूद कोपुकार रहा थाआईना आज भीउज्ज्वल धवलचमकीला मुस्करा रहामेरे चेहरे के पीछेदर्द से मुझे चिढ़ा रहाक्या खोया क्या पायाकितना रोया कितना गुनगुनायाकितने ख्वाब टूटेकितना सजा पायाकुछ लम्हों के दर्ददिल में समेटेउलझे सवालातजेहन में लपेटेचलता रहादुनिया की राहों मेंछलता रहा फरेबी निगाहों मेंरिश्ते बनते रहेटूटते रहेअंजान राहों मेंहम यूँ ही चलते रहेभागा कभी क़्क़त के पीछे तोलम्हात पीछे छूटते रहे..कभी खुशियों की महफ़िल मिलेकभी बेपनाह दर्दकभी हवाएं चली तेजतो कभी सर्दअनुभव बस यही मिलाजमाने की भीड़ मेंशुकून पंछी को मिलता हैखुद के ही नीड़ मेंजिंदगी जितनी रफ्तार से चलीख्वाब उतने ही पीछेछूटते गएअपनापन की ख्वाहिश में हीअपने मुझसे रूठते गए........।




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