इस ब्लॉग को पढने के लिए आप सभी पाठको का तहे दिल धन्यवाद !! आपने जो अपना अनमोल कीमती समय इस ब्लॉग को दिया है , उसके लिए मैं आपका आभारी रहूँगा !!!

Friday, December 20, 2019

ज़िंदगी एक आईना



आज आईने के सामनेखड़ा अपने आपकोनिहार रहा थागुमशुदा वजूद कोपुकार रहा थाआईना आज भीउज्ज्वल धवलचमकीला मुस्करा रहामेरे चेहरे के पीछेदर्द से मुझे चिढ़ा रहाक्या खोया क्या पायाकितना रोया कितना गुनगुनायाकितने ख्वाब टूटेकितना सजा पायाकुछ लम्हों के दर्ददिल में समेटेउलझे सवालातजेहन में लपेटेचलता रहादुनिया की राहों मेंछलता रहा फरेबी निगाहों मेंरिश्ते बनते रहेटूटते रहेअंजान राहों मेंहम यूँ ही चलते रहेभागा कभी क़्क़त के पीछे तोलम्हात पीछे छूटते रहे..कभी खुशियों की महफ़िल मिलेकभी बेपनाह दर्दकभी हवाएं चली तेजतो कभी सर्दअनुभव बस यही मिलाजमाने की भीड़ मेंशुकून पंछी को मिलता हैखुद के ही नीड़ मेंजिंदगी जितनी रफ्तार से चलीख्वाब उतने ही पीछेछूटते गएअपनापन की ख्वाहिश में हीअपने मुझसे रूठते गए........।




तन्हाई की यादें !!


करवटों में गुजरती हैं रातें अब अपनी...
ख्वाब ये तेरा यूँ मुझको जगाता हैं...

उल्फत के हैं.. जो बादल ये बरसते...
और मन हैं कि बस भीगे जाता हैं...

जब से बाहों में बसी तेरे बदन कि गर्मी...
रूह में हैं कुछ..जो महके जाता हैं...

शिद्दत-इ-इश्क अब रोज हैं बढती...
मिले भी जो अब तू.. बस बेचैनियाँ बढाता हैं...

उम्र भर को ही हमदम पास अब आ जा
बारहां खुद तड़पता हैं.. मुझको तड़पाता हैं...

एक लिबास तेरा.. और उस पे अदायें भी...
हाल-ऐ-दिल क्या हो.. सब होश जाता हैं...

तेरी कमर के बल पे अटके अरमान जो मेरे...
उंगलियाँ जब ढूंढे.. तू खुद को खुद में छुपाता हैं...

तेरी मेरी आँखों में अब जो साझा हैं सपने...
रिश्ता हैं ये अपना... जो अब गहराता हैं....


                     

 ꘥𑃵𑃵
निरंजन पटेल....

Wednesday, January 16, 2019

बचपन के पल (पार्ट 2 )

बचपन की यादें जब कभी याद आती हैं आँखें नम कर जाती हैं| वो दिन ऐसे होते हैं जो हर कोई चाहता हैं की लौट के आजायें | दोस्तों वो दिन लौट कर वापिस तो नहीं आ सकते बचपन पल बड़े ही अनमोल होते हैं आज जब हम किसी छोटे बच्चे को देखते हैं। तो उसमे हमारा बचपन नज़र आता है।  बचपन में न कुछ पाने का सपना होता  न ही कुछ खोने का डर होता है 
वो गाँव की पतली-पतली गलियों में दौड़ कर चलना, घर में भाई बहन के साथ खेलना कहीं उनसे रूठना, कहीं उन्हें मनना, कभी उनसे रूठकर कट्टी कर लेना, कही वो हमसे कट्टी कर लेते, दूसरे दिन फिर उसी तरह साथ में खेलना,कहीं स्कूल में दोस्तों कि शिकायत करना कहीं दोस्तों से झगड़ा करना घर आकर मम्मी को सारी बात बताना, कितना अनमोल होता है कितना मीठा पल होता है ऐसे पलों का हम बयां  भी नहीं कर सकते। 
कहीं कागज़ के पन्नो से जहाज़ बनना और उसे हवा में जोर से उड़ना और ये देखना की किसकी जहाज़ कितने देर हवा में उड़ रही थी, बरसात में समय में पानी बरसने का इंतजार करते और बरसात रुकने के बाद दौड़ कर खेत से मिट्ठी लाकर खिलौने बनाते, फिर 2-3 दिन सूखने के बाद एक पतली सी रस्सी बाँधकर उसे चलते, दूसरे के खिलौनों को ईर्ष्या की नजर से देखते, कही बातों ही बातों में बहन से झगड़ा कर लेते, कट्टी करते कुछ समय बाद फिर साथ खेलने लगते। 
गर्मी के समय में आम के बगीचे में पेड़ के नीचे गुड्डे - गुड़िया बनाकर खेलते फिर उनकी शादी करना, जरा सी हवा चलने पर दौड़ कर आम बीनते, और अगर किसी पेड़ के एक पका हुआ आम दिख जाये तो पत्थर या मिट्ठी के ढेले से तब तक मारते जब तक वो गिर न जाये। फिर साथ मिलकर खाते फिर किसी बात पर झगड़ा कर लेना फिर कट्टी होना फिर दूसरे दिन बोलने लगना, मानो यहीं ज़िंदगी है। 
साथ में किताब,कॉपी,टिफिन लेकर स्कूल जाना वहां दोस्तों के साथ मस्ती करना दूसरे दोस्त का लंच खाना , छुट्टी होने पर साथ में अपने-अपने  जाना घर आकर हाथ पैर धोकर खाना खाना , कहीं होमवर्क करने का डर, कहीं दूसरे दिन टीचर द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नो को याद करने का डर, न बनने पर मार खाने का डर। तो कहीं हफ्ते में संडे आने का इंतजार 
 आज हमें ये बातें याद करके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। 
मम्मी - पापा के साथ मेले में जाना और वहां जाकर लाई, जलेबी , गुब्बारे और खिलौना खरीदने कि ज़िद करना। और मिल जाने पर मनो सारी खुशियाँ आ मिल गयीं  है , 
झूले में डर - डर कर बैठना फिर झूले के ऊपर जाने पर जोर-जोर से चिल्लाना।
आज इस उम्र में पहुंचकर ऐसा लगता हैं कि , आज वही बचपन, वही खुशियाँ  फिर दुबारा लौटकर आ जाये, लेकिन यह सच है कि वो बचपन वो पल कभी लौटकर नहीं आयेगा। वो पल आज भी हमारी आँखों के सामने घूमने लगता हैं, जब हम किसी छोटे बच्चे को खेलते देखते हैं तो हमें अपना बचपन नजर  आता है।  यह पल कितना अनमोल है उसका बयां नहीं किया जा सकता !!!


बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी !!

                                           कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन
                                           सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम...

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Thursday, December 13, 2018

काश तुम यहाँ होती

ये दिल कहता है, की काश तुम यहाँ होती।
दिल में जो कशक है, आज वो बयाँ होती।।

काश उन काजल लगी आँखों से मुझे घूरती।
की काश तुम आज फिर से खफा होती।।
हर-इक वो मंजर जो, कैद है मेरी आँखों मे।
हर-इक एहसास जो, बसा है मेरी साँसों में।।
अब तो हर घड़ी एक, टिस सी है इस दिल में।
की काश वो शाम आज फिर से जवाँ होती।।
ये दिल कहता है, की काश तुम यहाँ होती।
दिल में जो कशक है, आज वो बयाँ होती।।
खनक तेरी चूड़ियों की, आज भी है कानो में।
तरसता उस मिठास को, जो थी तेरी जुबानों में।।
ख्वाहिश हर वक्त यहीं रहता है, मेरे इस दिल में।
की काश मैं परवाना, और तुम फिर से शमां होती।।
ये दिल कहता है, की काश तुम यहाँ होती।
दिल में जो कशक है, आज वो बयाँ होती।।